सृष्टि के संतुलन के लिए उन्होंने डमरू धारण किया
हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव के डमरू का महत्व विस्तार से बताया गया है। शिवमहापुराण के अनुसार, भगवान शिव से पहले संगीत के बारे में किसी को भी जानकारी नहीं थी। तब न तो कोई नृत्य करना जानता था, न ही वाद्ययंत्रों को बजाना और गाना जानता था। ऐसे में सृष्टि के संतुलन के लिए उन्होंने डमरू धारण किया।
मान्यता है कि डमरू की ध्वनि से ही संगीत की धुन और ताल का जन्म हुआ। भगवान भोलेनाथ का डमरू सृष्टि में संगीत, ध्वनि और व्याकरण पर उनके नियंत्रण का द्योतक है। शिव जब डमरू सहित तांडव नृत्य करते हैं तो यह प्रकृति में आनंद भर देता है। तब शिव क्रोध में नहीं होते अपितु संसार से दुख को नष्ट कर नई शुरुआत करने का संदेश देते हैं। शिव का डमरू नाद-साधना का प्रतीक माना जाता है। नाद अर्थात वह ध्वनि जिसे ‘ऊं’ कहते हैं। इसके उच्चारण का महत्व भी योग व ध्यान में वर्णित है। भगवान शिव के डमरू से निकले अचूक और चमत्कारी 14 सूत्रों को एक श्वास में बोलने का अभ्यास किया जाता है।
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लोकवाद्य की श्रेणी में रखा गया है
हिंदू , तिब्बती व बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण वाद्य माना जाता है भगवान शिव का डमरू। इसे लय में सुनते रहने से मस्तिष्क को शांति मिलती है और हर तरह का तनाव हट जाता है। इसकी ध्वनि से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियां भी दूर हो जाती हैं। कर्नाटक के कई शिव मंदिरों में पूजन के दौरान डमरू वादन किया जाता है। इसे लोकवाद्य की श्रेणी में रखा गया है।
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वीर रस की श्रेणी में रखा जाता है
डमरू के संगीत को वीर रस की श्रेणी में रखा जाता है। डमरू की धुन और इसके सहोदर तबले की थाप को सुनकर शिथिल पड़े मन को जागृत किया जा सकता है। इनसे निकला संगीत मन को एकाग्र तो करता ही है साथ ही प्रेरित भी करता है। डमरू की आवाज यदि लगातार एक जैसी बजती रहे तो इससे चहुंओर का वातावरण बदल जाता है। यह वादक की शैली पर निर्भर करता है कि आप इसे किस प्रकार बजा रहे हैं। जिस प्रकार रुद्रवीणा में श्वास के चरण के हिसाब से संगीत में परिवर्तन आता है, ठीक वैसे ही डमरू और तबला वादन में भी वादक की मानसिक अवस्था और शारीरिक स्थिति का प्रभाव पड़ता है। जैसी आपकी अवस्था होती है वैसा ही नाद उत्पन्न होता है। जब तबले पर अंगुलियां थिरकती हैं तो सुनने वाले को आनंद तो आता ही है। वास्तव में सावन के बाद भी भगवान शिव संगीत रूप में सदैव हमारे साथ ही रहते हैं।