भगवान शिव अनादि और अनंत स्वरूप हैं। वेदों और पुराणों में भगवान शिव के अनेकों रूपों का वर्णन है। लेकिन फिर भी आज तक कोई भी भगवान शिव के रहस्यों को पूरी तरह से समझ नहीं पाया हैं। भगवान शिव कल्याणमय, देवाधिदेव महादेव हैं। आज हम भगवान शिव के एक ऐसे ही रूप नीलकण्ठ महादेव के बारे में बता रहे हैं। मान्यता है कि सावन (Sawan) माह में भगवान शिव के इस रूप का पूजन करने से आपकी कुण्डली के सभी ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं।
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आइए जानते हैं भगवान शिव के नीलकण्ठ रूप की कथा और उसका महात्म….
कैसे बने भगवान शिव नीलकण्ठ महादेव
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। तो उससे एक ओर तो 14 रत्न निकले वहीं दूसरी ओर कालकूट नामक विष भी निकला। विष के प्रभाव से चारों ओर अग्नि की ज्वालाएं निकलने लगी, जीव – जंतु मरने लगे। तब भगवान शिव ने सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए विष का पान किया। माता पार्वती ने भगवान शिव को विष के प्रभाव से बचाने के लिए हाथ लगा कर विष उनके गले में ही रोक दिया। जिस कारण भगवान शिव का गला नीला पड़ गया। उस समय से ही भगवान शिव को नीलकण्ठ महादेव के नाम से जाना जाने लगा। सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव के इस स्वरूप का पूजन वंदन किया।
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नीलकण्ठ महादेव का पूजन
भगवान शिव ने नीलकण्ठ स्वरूप जगत के कल्याण के लिए धारण किया था। अतः भगवान शिव के इस स्वरूप का पूजन करने से भक्तों के सभी कष्ट, संकट दूर होते हैं तथा रोग-दोष से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव के ऊँ नमो नीलकंठाय । मंत्र का जाप करने और शिवलिंग का गन्ने के रस से अभिषेक करने से ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं। माना जाता है भगवान शिव के कण्ठ से ही नील कण्ठ नामक पक्षी उत्पन्न हुआ है। सावन मास में नील कण्ठ पक्षी के दर्शन से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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