Diwali: पांच दिवसीय दीप पर्व की शुरूआत धनतेरस से होती है, जबकि दूसरे दिन नरक चौदस मनाया जाता है. जिसे छोटी दिवाली (Chhoti Diwali) भी कहते हैं. इस दिन का भी खूब महत्व है. नरक चौदस, रूप चौदस और छोटी दिवाली तीनों इसी दिन के नाम है. माना जाता है कि दिवाली की साफ सफाई में दिन बिताने के बाद छोटी दिवाली का दिन रूप सज्जा और खुद की देखभाल में बिताया जाता है इसलिए इसे रूप चौदस भी कहा जाता है. पर नरक चौदस नाम पड़ने के पीछे कई किंवदंतियां जुड़ी हैं.
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नरकासुर का वध
माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने इसी दिन नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था. इसलिए इसे नरक चौदस कहा जाने लगा. इसे मुक्ति पर्व भी माना जाता है.
नरकासुर राक्षस देव-देवियों और मनुष्यों सभी को बहुत परेशान करता था. श्रीमद्भागवत के अनुसार नरकासुर ने न केवल देवताओं की नाक में दम कर रखा था बल्कि 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बनाकर रखा था. तीनों लोक उसके अत्याचारों से परेशान हो गए. जब कोई हल नहीं मिला तो देवी देवताओं ने भगवान कृष्ण की शरण लेना ही उचित समझा. देवी देवताओं ने भगवान से गुहार लगाई कि वो नरकासुर का वध कर तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्त करें.
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नरकासुर का श्राप
ये भी माना जाता है कि नरकासुर को ये श्राप मिला था कि वो किसी स्त्री के कारण ही मारा जाएगा. ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद ली. उन्हें अपना सारथी बनाया. और नरकासुर का वध किया. ये दिन चौदस का ही दिन था जिसे नरक चौदस कहा जाने लगा. इस प्रकार भगवान कृष्ण ने हजारों स्त्रियों को नरकासुर की कैद से मुक्त करवाया. इसमें से कई स्त्रियां ऐसी थीं जिनके परिजनों की नरकासुर ने हत्या कर दी थी. ऐसी निराश्रित स्त्रियां समाज में पूरे सम्मान ने साथ रह सकें इसलिए भगवान ने 16,000 स्त्रियों को अपने नाम के रक्षासूत्र दिए, ताकि संपूर्ण आर्यावृत में इन स्त्रियों को श्रीकृष्ण की पत्नियों की तरह सम्मान मिल सके.
यम और बजरंगबली की पूजा
छोटी दिवाली पर पूरे घर में दीपक जलाए जाते हैं. इस दिन यमराज और बजरंग बली की पूजा भी खासतौर से की जाती है. मान्यता है कि इस दिन यम का पूजन वालों को नरक में मिलने वाली यातानाओं और अकाल मृत्यु के डर से मुक्ति मिलती है.